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संक्षिप्त परिचय

भारत सरकार टकसाल, मुंबई एसपीएमसीआईएल की एक इकाई है जो की संस्मारक सिक्कों, पदकों और वजन, माप तौल के मानकों का निर्माण करती है। इसके अलावा, इकाई में सोने और चांदी को परिष्कृत किया जाता है। इकाई धातु परीक्षण की प्रयोगशाला से सुसज्जित है । 1829 में स्थापित भारत सरकार टकसाल मुंबई भारत की सबसे पुरानी टकसाल में से एक है।

यह इकाई योजना से लेकर तैयार उत्पादों तक की सभी प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक स्तर पर सेवाओं की व्यापक श्रृंखला प्रदान करती है। टकसाल में निर्मित अन्य उत्पादों में सत्यापन स्टैम्पों, सत्यापन प्लगों का निर्माण किया जाता है ।

यह आईएसओ 9001:2008, आईएसओ 14001:2004 और एनएबीएल/आईएसओ 17025:2005 प्रमाणित इकाई है। वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान आईजीएम मुंबई ने 2,201 मिलियन सिक्कों का उत्पादन किया।

संगठन संरचना

इतिहास

मुंबई टकसाल भारत की सबसे पुरानी टकसालों में से एक है। इसके इतिहास की जड़ें सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम 25- 30 वर्षों से जुड़ीं हैं। सिक्कों की तरह टकसाल का इतिहास भी शताब्दी दर शताब्दी चलता रहा। एक छोटी सी जगह में छेनी हथौड़ी से ठोंक-पीट कर सिक्के बनाए जाने से लेकर, क्वाइल मशीन में डालने पर छपे-छपाए तैयार सिक्के निकलने तक की विकास गाथा मे कई रोचक कहानिया शामिल हैं जैसे प्राचीन काल में सिक्कों का वजन ग्राम से नहीं बल्कि अनाज के दानों से निर्धारित किया जाता था

मुंबई में पहली टकसाल गवर्नर अंगियर ने रुपये,पाइयाँ और बज्रुक ढालने के लिए स्थापित की थी। मुंबई टकसाल का पहला रुपया 1672 मे ढाला गया था। ये सिक्के मुंबई किले में ढाले गए थे। यह किला उस जगह स्थित था जहाँ आज टाउन हाल के पास आई.एन.एस.आंग्रे स्थित है।आज जहाँ भारतीय रिजर्व बैंक की बहु मंजिली इमारत खड़ी हैं उस जगह पर एक तालाब था।

वर्तमान टकसाल 1824 से 1830 के बीच बॉबे इंजीनियर्स के कैप्टन हॉकिंस ने बनवाई थी। जनवरी 1830 में मि. जेम्स फेरिश मास्टर आफ द मिंट नियुक्त किए गए। कई वर्षों तक भाप के तीन इंजनों द्वारा 1,50,000 सिक्के प्रतिदिन का उत्पादन होता रहा।

1863 मे कर्नल बैलार्ड मुंबई मिंट के मिंट मास्टर बने। मि. बैलार्ड लोकप्रय ब्रिटिश मिंट मास्टर थे। उन्होने मुंबई में समुद्र को पाट कर जमीन निकाली थी जो आजकल बैलार्ड पियर के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र को यह नाम उन्हीं की स्मृति में दिया गया है।

मुंबई टकसाल प्रारम्भ में महामहिम गवर्नर ऑफ बॉम्बे प्रेसीडेंसी के नियंत्रण में थी । इसके बाद वित्त विभाग ने संकल्प क्र 247 दिनांक 18.5.1876 द्वारा इसे भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया । 1893 तक भारतीय टकसालें भारतीय सिक्का ढलाई अधिनियम XVII-1835, XIII-1862 tTa XXIII -1870 द्वारा नियंत्रित थीं। नये सिक्का ढलाई अधिनियम 1906, समय-समय पर यथा संशोधित, के अनुसार भारतीय टकसालों में एक हजार मूल्यवर्ग तक के सिक्के ढाले जा सकते हैं।

1918-19 में टकसाल में एक स्वर्ण परिष्करणशाला स्थापित की गई। इसमें क्लोरीन पद्धति से स्वर्ण परिष्करण प्रारंभ किया गया। इसमें दक्षिण अफ्रीका तथा भारतीय खदानों से आने वाला सोना परिष्कृत किया जाता था।

1918-19 में इस टकसाल में ब्रिटिश सोवरेन ढालने के लिए रायल मिंट आफ लंदन की एक शाखा खोली गई जोकि 12.95 लाख सोवरेन ढालने के बाद अप्रैल 1919 में बंद कर दी गई। बाद में इसी स्थान को मिंट मास्टर का आवास बना दिया और अब यह मिंट हाउस कहलाता है

1929 में चाँदी की परिष्करणशाला स्थापित की गई। इसकी क्षमता 80 मिलियन ऑंस प्रति वर्ष थी। 1947 में शुद्ध निकल के सिक्के ढाले गए। अगस्त 1950 में सिक्कों से ब्रिटिश राजाओं की मूर्तियाँ हटा कर अशोक स्तंभ अंकित किया गया।

1957 से भारत में दशमलव प्रणाली लागू हुई। इसी वर्ष श्री बी.एस.डी.अय्यर पहले भारतीय मिंट मास्टर बने। 1964 में स्मारक सिक्कों का उत्पादन प्रारंभ हुआ। पहला स्मारक सिक्का तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की स्मृति में बनाया गया। उसके बाद अब तक विविध विषयों पर स्मारक सिक्के ढाले जाते रहे हैं।

मुंबई टकसाल की एक अन्य प्रमुख गतिविधि वजन के प्रामाणिक , माध्यमिक प्रचलित मानक तथा तरल मापक के माध्यमिक एवं प्रचलित मानक बनाना है। ये मानक मापक राज्य सरकारों के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाजार की दैनिक व्यापारिक गतिविधियों में माप-तौल की शुद्धता सत्यापित करने के लिए भारत की सभी राज्य सरकारों द्वारा उपयोग किए जाते हैं।

टकसाल में एक पदक विभाग है । यहाँ रक्षा मंत्रालयों, विश्वविद्यालयों, स्कूलों- कॉलेजो, विभिन्न मंदिरों के ट्रस्ट तथा अन्य सरकारी - गैर सरकारी संस्थानों के पदक बनाने का कार्य किया जाता है।

टकसाल में एक धातु परीक्षण विभाग भी है जोकि उतना ही पुराना है जितनी टकसाल। धातु परीक्षण विभाग का प्राथमिक कार्य टकसाल में बनाए जाने वाले सिक्कों की गुणवत्ता की जांच करना तथा देश की सिक्का ढलाई के वैधानिक मानक सुनिश्चित करना तथा उन्हें बनाए रखना है।

वर्ष 2006 में भारत सरकार ने सभी टकसालों और मुद्रणालयों और कागज कारखानों के निगमीकरण का निर्णय लिया । तदनुसार वित्त मंत्रालय आर्थिक कार्य विभाग के अधीन सभी नौ इकाइयों ( टकसालों. मुद्रणालयों, और कागज कारखानों ) का प्रतिभूति मुद्रण एवं मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड निगम बन गया ।

 
 

 

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